Saturday, 26 May 2018



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ग्रामीण विकास में मनरेगा(MGNREGA) की भूमिका

मनरेगा का इतिहास-:

  • ज्यां द्रेज(jean dreze) को "नरेगा का आर्किटेक्ट" कहा जाता है। उनका जन्मबेल्जियम में 1959 में हुआ था!भारत में कार्यरत सामाजिक कार्यकर्ता और अर्थशास्त्री हैं। भारत में उनके प्रमुख कार्यों में भूख, अकाल, लिंग असमानता, बाल स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे मुद्दे शामिल हैं।
  • राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना(Nrega) को 25 अगस्त 2005 को अधिनियमित किया गया!
  • नरेगा(nrega) की शुरूवात 2 फरवरी 2006 को आन्ध्रप्रदेश के अनन्तपुर जिले में देश के 200 जिलों में हुई!
  • 1 अप्रैल 2008 को सम्पूर्ण देश में यह योजना लागू हुई!
  • 2 अक्टुबर 2009 को नरेगा(Nrega) का नाम बदलकर महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम(Mgnrega)कर दिया गया!

मनरेगा का उद्देशय-:

  • ग्रामीण भारत के जीवन में सुधार लाना!
  • विशेषकर ग्रामीण महिलाओं का विकास!
  • ग्रामीण परिवारों को 100 दिन के रोजगार की गारंटी देता हैं!
  • ग्रामीण परिवारो को समाज की मुख्यधारा में लाना और बैकिंग सेक्टर से जोड़ना!
  • ग्रामीण इन्फ्रास्टकचर का विकास, जैसे मुख्य उद्देशय शामिल हैं

मनरेगा की कार्यप्रणाली-:


  • यह विश्व की सबसे बडी़ रोजगार परख योजना हैं!
  • इस अधिनियम के तहत प्रत्येक ग्रामीण परिवार को जो उक्त योजना के तहत अकुशल श्रमिक के रूप में कार्य करना चाहता हैं उस परिवार को 100 दिन के रोजगार की गारंटी देता हैं!
  • पूरे वित्तीय वर्ष में कराये जाने वाले कार्यो का चयन ग्राम के लोगों द्वारा कर व ग्राम सभा की खुली बैठक में अनुनोदित किया जाता हैं!
  • श्रमिकों को मजदूरी का भुकतान श्रमिक को सीधे उनके बैंक खाते में किया जाता हैं!
  • मनरेगा के तहत कराये गये कार्यो की देखरेख भारत सरकार द्वारा भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन की Geo platform..Gps द्वारा geotagging के माध्यम से की जाती हैं!

मनरेगा के तहत अनुमन्य कार्य-:

मनरेगा के तहत दो प्रकार के कार्य किये जाते हैं
  1. सार्वजनिक कार्य- जिसके अन्तर्गत पेयजल,ग्रामीण संयोजकता,खेल ग्राउण्ड,जल संरक्षण एंव जल संचय,भूमि सुधार,बाड़ नियंत्रण व अन्य कार्य जो राज्य सरकार या भारत द्वारा अधिनियमित हो कराये जाते है!
  2. निजी कार्य-: जिसके अन्तर्गत एसे कार्य जिससे ग्रामीणो की आजिविका में सुधार हो जैसे,मछली तालाब व पशु के लिये पशुबाडा बनाया जाता हैं

मनरेगा में सुधार की आवश्यकता-:

मनरेगा ग्रामीण क्षेत्र के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है परन्तु आधिनयम में पर्वती  व मैदानी क्षेत्रों के लिए एक ही नियम बनाये गए है !जबकि पर्वती क्षेत्रों की भगौलिक स्थिति बहुत ही जटिल है जिससे सामान नियमो के तहत कार्य करना बहुत ही कठिन है जिसे सरल बनाने की आवस्य्क्ता  है !जिससे ग्रामीण भारत का समग्र विकास हो सके! 🙏🙏

Thursday, 17 May 2018

उत्तराखंड में पलायन: एक गंभीर समस्या

उत्तराखंड में पलायन एक गंभीर समस्या के रूप में सामने आ रही है !इसके दो मुख्यतया दो कारण है
१- प्राकृतिक कारक
२-मानवी कारक
प्राकृतिक कारक  - किसी भी राज्य हो या राष्ट्र उसके विकास के लिए अवसंरचना(Infrastructure) का होना बहुत ही आवश्यक है परन्तु  उत्तराखंड की भगौलिक स्थिति पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण यहॉ  वर्ष में प्राकृतिक जैसे बाढ़ ,भूस्खलन समस्याओं से जूझता रहता है जो विकास में बड़ी रुकावट पैदा करता है जिससे ग्रामीण क्षेत्र में निवास करने वाले परिवार मैदानी भागों में पलायन करने को मजबूर है

मानवी कारक - मानव अपने विकास व विनाश के लिए स्व्यम ही उत्तरदायी है उत्तराखंड में पलायन की समस्या कुछ नहीं अपितु यहां के लोगो की सोच है जिसके निम्न्लिखित कारक है

  • गुणवक्ता परख शिक्षा का ना होना -सरकारों ने इतने शिक्षण सस्थान  खोले जिनका रखरखाव करना सरकार के लिए मुश्किल हुआ और अंततः आज ये स्थिति है की आज उन शिक्षण सस्थान को बंद करने की स्थिति में है 
  • शिक्षा ,सड़क ,स्वास्थ अन्य मूलभूत संसाधनों का रखरखाव नहीं होना भी पलायन का मुख्य कारण है!
  • कृषि क्षेत्र में युवाओं की रूचि कम होना - यहां के लोग ना तो खुद कृषि कार्य करना चाहते और ना ही उसको उपयोग के लिए दुसरो को देना चाहते ! यदि इसी जमीन को सरकार पट्टे पे ले के किसी ऐसे व्यक्ति को दे जो उस भूमि मे अच्छा कर सकता है तो सायद उत्तराखंड में पलायन नहीं होता !
  • दुसरो की देखादेखी भी यह के लोगो की प्रवित्ति है जिससे भी दिनप्रतिदिन पलायन में इजाफा हो रहा है 
पलायन को रोकने के कुछ सुझाव - पलायन केवल सोच पर निर्भर है इसको रोकने के कुछ सुझाव निम्न है !
१-नया भूमि बंदोबस्त नीति लागू हो और पहाड़ की जो बंजर पड़ी भूमि (Unusse Land) को पट्टे (Lease) पर दी जाये या तो राज्य की लोगो को या फिर अन्यत्र राज्य के लोगो जिससे यहां कृषि को बहुत बढ़ावा मिलेगा !
२-पर्यटन स्थलों का विकास था उस का विज्ञापन (Advertisment) भी किया जाये !
३- राज्य के कुछ ऐसे स्थानों को चिन्नित करके उन में लघु उद्धयोगो की स्थापना की जाये जिससे यहां के युवाओं को रोजगार मिल सके !
४- तकनीकी शिक्षण सस्थानों की स्थापना की जाये !