Sunday, 28 December 2025

वर्तमान में मोबाइल बच्चों के लिए अभिशाप है या नहीं?

वर्तमान में मोबाइल बच्चों के लिए अभिशाप है या नहीं?

आज के डिजिटल युग में मोबाइल फोन (स्मार्टफोन) बच्चों के जीवन का हिस्सा बन चुके हैं। आपका सवाल है कि क्या ये अभिशाप(curse) हैं? इसका जवाब सरल नहीं है—मोबाइल न तो पूरी तरह वरदान हैं और न ही पूर्ण अभिशाप। अत्यधिक और अनियंत्रित उपयोग से ये बच्चों के लिए हानिकारक (अभिशाप जैसे) हो सकते हैं, जबकि सीमित और सही उपयोग से फायदेमंद भी। आइए तथ्यों के आधार पर दोनों पक्ष देखें।

मोबाइल के नुकसान (क्यों अभिशाप जैसे लगते हैं)
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और हालिया अध्ययनों (2025 तक) के अनुसार, बच्चों में मोबाइल का ज्यादा उपयोग गंभीर समस्याएं पैदा कर रहा है:

मानसिक स्वास्थ्य पर असर: डिप्रेशन, एंग्जायटी, चिड़चिड़ापन बढ़ता है। सोशल मीडिया से साइबरबुलिंग, कम आत्मसम्मान और तुलना की भावना आती है।
शारीरिक स्वास्थ्य: आंखों की रोशनी कम होना, ब्लू लाइट से नींद की कमी, मोटापा (कम शारीरिक गतिविधि से), गर्दन-कंधे का दर्द।
विकास पर प्रभाव: छोटे बच्चों (2-5 साल) में भाषा विकास, ध्यान केंद्रित करने में कमी, लत लगना (एडिक्शन)।
अन्य जोखिम: अनुचित कंटेंट देखना, रेडिएशन का खतरा (हालांकि विवादास्पद), सामाजिक अलगाव।

मोबाइल के फायदे (वरदान के रूप में)
सही उपयोग से मोबाइल बच्चों के लिए उपयोगी भी हैं:-

सुरक्षा: लोकेशन ट्रैकिंग, इमरजेंसी में कॉल करना।
शिक्षा: ऑनलाइन लर्निंग ऐप्स, वीडियो, जानकारी आसानी से मिलना।
संचार: परिवार-दोस्तों से जुड़े रहना, खासकर व्यस्त माता-पिता के लिए।
मनोरंजन और विकास: शैक्षिक गेम्स, क्रिएटिविटी बढ़ाना।

निष्कर्ष: अभिशाप नहीं, लेकिन सावधानी जरूरी
वर्तमान में (2025 तक) मोबाइल बच्चों के लिए पूर्ण अभिशाप नहीं हैं, लेकिन अत्यधिक उपयोग अभिशाप बन सकता है। WHO सलाह देता है: 5 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए स्क्रीन टाइम न्यूनतम, 13 साल से पहले स्मार्टफोन न दें।

सलाह माता-पिता के लिए:
- स्क्रीन टाइम सीमित करें (2-5 साल: 1 घंटा/दिन, बड़ा: 2 घंटे)।
- पैरेंटल कंट्रोल यूज करें।
- खुद उदाहरण बनें—कम फोन यूज करें।
- बाहर खेलने, पढ़ने को प्रोत्साहित करें।

Friday, 26 December 2025

माओवाद: एक समस्या या सरकार की नीतियों की असफलता?

माओवाद: एक समस्या या सरकार की नीतियों की असफलता?

माओवाद या नक्सलवाद भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए लंबे समय से एक बड़ी चुनौती रहा है। 1967 में पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी गांव से शुरू हुआ यह आंदोलन माओ त्से-तुंग की विचारधारा से प्रेरित था, जो किसानों और आदिवासियों के अधिकारों के लिए सशस्त्र संघर्ष की वकालत करता था। आज, दिसंबर 2025 में, स्थिति काफी बदल चुकी है। सरकार के आंकड़ों के अनुसार, नक्सल प्रभावित जिलों की संख्या 126 से घटकर मात्र 11-18 रह गई है, और 2026 तक इसे पूरी तरह समाप्त करने का लक्ष्य है। लेकिन सवाल यह है कि क्या माओवाद केवल एक 'समस्या' है, या यह सरकार की नीतियों की असफलता का परिणाम भी है?

 माओवाद की जड़ें: सरकार की नीतियों की असफलता?
माओवाद का उदय कोई अचानक घटना नहीं थी। यह सामाजिक-आर्थिक असमानताओं का नतीजा था। आदिवासी क्षेत्रों में जल, जंगल और जमीन पर उनका अधिकार छीना गया। खनन परियोजनाओं और बड़े विकास प्रोजेक्ट्स ने लाखों आदिवासियों को विस्थापित किया, लेकिन पुनर्वास और लाभ उन्हें नहीं मिला। भूमि सुधार कानूनों का ठीक से क्रियान्वयन नहीं हुआ, जिससे जमींदारों और गैर-आदिवासियों का कब्जा बना रहा। गरीबी, बेरोजगारी, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी ने लोगों को अलग-थलग कर दिया।

सरकार की अनदेखी ने इन क्षेत्रों में वैक्यूम पैदा किया, जिसे माओवादियों ने भर लिया। वे जन अदालतें चलाते, न्यूनतम मजदूरी लागू कराते और स्थानीय विवाद सुलझाते थे। कई विशेषज्ञ मानते हैं कि माओवाद राज्य की विफलता का प्रतीक है – जहां लोकतंत्र पहुंच नहीं पाया, वहां हिंसा ने जगह ले ली। यदि विकास योजनाएं ईमानदारी से लागू होतीं, तो शायद यह आंदोलन इतना बड़ा न होता।

माओवाद एक सुरक्षा समस्या के रूप में
दूसरी ओर, माओवाद ने खुद को एक गंभीर समस्या बना लिया है। दशकों की हिंसा में हजारों लोग मारे गए – नागरिक, सुरक्षाकर्मी और खुद माओवादी। वे स्कूल, अस्पताल और सड़कें बनाने के कामों को बाधित करते हैं, विकास को रोकते हैं। extortion, हथियारबंद हमले और IED विस्फोट उनकी रणनीति का हिस्सा रहे हैं। यह लोकतंत्र के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह है, जो संविधान को नहीं मानता।

2025 में यह आंदोलन अपने अंतिम चरण में है। इस साल सैकड़ों माओवादी मारे गए, हजारों ने आत्मसमर्पण किया। शीर्ष नेता जैसे बसवराजू और अन्य मुठभेड़ों में ढेर हो चुके हैं। प्रभावित क्षेत्र 'रेड कॉरिडोर' सिमटकर कुछ जिलों तक रह गया है। प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने स्पष्ट कहा है कि 31 मार्च 2026 तक भारत नक्सल-मुक्त होगा।

सरकार की वर्तमान नीति: सफलता की ओर?
मोदी सरकार की रणनीति बहुआयामी है – सुरक्षा अभियान (जैसे ऑपरेशन कगार), विकास कार्य (सड़कें, स्कूल, अस्पताल, मोबाइल टावर) और आत्मसमर्पण नीति। सरेंडर करने वालों को पुनर्वास और सुरक्षा दी जा रही है। यह दृष्टिकोण काम कर रहा है, क्योंकि हिंसा की घटनाएं तेजी से घटी हैं और माओवादी संगठन कमजोर पड़ रहा है।

निष्कर्ष: दोनों का मिश्रण, लेकिन समाधान विकास में
माओवाद मूल रूप से सरकार की नीतियों की असफलता से उपजा, लेकिन अब यह एक स्वतंत्र समस्या बन चुका है जो हिंसा से पनपती है। केवल बल प्रयोग से इसे खत्म नहीं किया जा सकता; जड़ों को समाप्त करना जरूरी है। यदि आदिवासी क्षेत्रों में समावेशी विकास, भूमि अधिकार और अच्छा शासन सुनिश्चित हो, तो विचारधारा खुद कमजोर पड़ जाएगी। 2025 के अंत में हम एक निर्णायक जीत के करीब हैं, लेकिन स्थायी शांति के लिए विकास और न्याय पर फोकस बनाए रखना होगा।

माओवाद हमें याद दिलाता है कि लोकतंत्र तभी मजबूत होता है, जब वह सबसे कमजोर वर्ग तक पहुंचे।

Thursday, 25 December 2025

बांग्लादेश मे हिदुंओ की स्थिति


बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों की स्थिति वर्तमान में गंभीर और चिंताजनक है, खासकर 2024 में शेख हसीना सरकार के गिरने के बाद से।

जनसांख्यिकीय स्थिति:-
बांग्लादेश की कुल आबादी लगभग 17 करोड़ है, जिसमें हिंदू लगभग 7-8%(लगभग 1.3 करोड़) हैं। 1947 में यह 22-23% थी, जो धीरे-धीरे घटकर 2022 की जनगणना में 7.95% हो गई। इसका मुख्य कारण धार्मिक उत्पीड़न, हिंसा और पलायन माना जाता है।

हाल की घटनाएं (दिसंबर 2025 तक)
दिसंबर 2025 में कई गंभीर घटनाएं हुईं:
दीपू चंद्र दास की लिंचिंग (18-19 दिसंबर): मयमनसिंह में कथित ब्लास्फेमी के आरोप में भीड़ ने एक हिंदू युवक को पीट-पीटकर मार डाला और शव को जलाया।
अमृत मंडल की हत्या: राजबाड़ी में एक और हिंदू की भीड़ द्वारा हत्या।
- चटगांव में हिंदू घरों में आगजनी और धमकी भरे नोट मिले।

इन घटनाओं ने भारत में बड़े प्रदर्शन कराए (दिल्ली, कोलकाता में बांग्लादेश दूतावास के बाहर), और भारत-बांग्लादेश संबंधों को तनावपूर्ण बना दिया।

व्यापक हिंसा के आंकड़े:-
- बांग्लादेश हिंदू बौद्ध क्रिश्चियन यूनिटी काउंसिल के अनुसार, अगस्त 2024 से मध्य-2025 तक  2,442 से अधिक सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं हुईं, जिसमें मंदिरों की तोड़फोड़, आगजनी, हत्याएं और महिलाओं पर हमले शामिल हैं।
- भारत सरकार के अनुसार, नवंबर 2024 से जनवरी 2025 तक 76 घटनाएं दर्ज की गईं।
- कुछ रिपोर्ट्स में कहा गया कि यह हिंसा राजनीतिक (अवामी लीग समर्थकों पर हमले) भी है, लेकिन हिंदू समुदाय मुख्य रूप से प्रभावित रहा।

 अंतरिम सरकार का रुख:-
मुहम्मद युनूस की अंतरिम सरकार ने इन घटनाओं की निंदा की है, गिरफ्तारियां की हैं और कहा है कि "नए बांग्लादेश में ऐसी हिंसा की कोई जगह नहीं"। सरकार अल्पसंख्यकों की सुरक्षा का दावा करती है, लेकिन कई रिपोर्ट्स (भारतीय मीडिया, हिंदू संगठन, HRW) में इसे अपर्याप्त बताया गया है। कट्टरपंथी ताकतें मजबूत हुई हैं, और कानून-व्यवस्था कमजोर है।

कुल मिलाकर, बांग्लादेश में हिंदू समुदाय डर और असुरक्षा के माहौल में जी रहा है। स्थिति में सुधार के लिए अंतरिम सरकार को मजबूत कदम उठाने की जरूरत है, और चुनाव (संभावित 2026 में) से स्थिरता की उम्मीद है। यह जानकारी विभिन्न स्रोतों (भारतीय मीडिया, अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट्स, विकिपीडिया) पर आधारित है। visit

Wednesday, 24 December 2025

अंतरिक्ष में भारत का बाहुबली (LVM Mark6)

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन(ISRO) ने अपने इतिहास में एक और अध्याय जोड़ा है जिससे दिनांक 24/12/2025 को अपने प्रक्षेपण यान LVM Mark6   के द्वार अमेरिकी अंतरिक्ष संचार  उपग्रह ब्लूवर्ल्ड ब्लॉक-2 को  आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा  के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से प्रक्षेपित कर अंतरिक्ष की निचली कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित किया जो भारत से लांच किया गया सबसे भारी उपग्रह है जिसका वजन लगभग 6100 kg है!  गौरतलब है कि इसरो द्वारा इससे पूर्व भी इस यान से चंद्रयान-2, चंद्रयान-3 का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया है! यह भारत की भारी उपग्रहों को अंतरिक्ष में प्रक्षेपण  क्षमता और विश्वास को रेखांकित करता है!  LVM Mark  प्रक्षेपण यान तीन चरणों का है जिसमें पहला चरण ठोस ईधंन(Solid Booster) और दूसरा चरण द्रव ईधंन(Liquid Booster) और तीसरा चरण में क्रायोजेनिक इंजन ( cryogenic upper stage) होता है! जिसमें लिक्विड हाइड्रोजन और लिक्विड ऑक्सीजन का मिश्रण होता है ! ब्लूवर्ल्ड ब्लॉक-2 इसरो की व्यावसायिक इकाई न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड और अमेरिकी कंपनी AST  स्पेस मोबाइल कंपनी के समझौते का हिस्सा है!  इस सेटेलाइट के द्वारा बिना मोबाइल टावर के और एरिया में नेटवर्क कनेक्टिविटी को बढ़ाना है इस उपग्रह के प्रक्षेपण के बाद इसरो के व्यावसायिक गतिविधियों में वृद्धि होगी और भारत को भारी सैटेलाइट को अंतरिक्ष में भेजने में आसानी होगी?! अगर इस गति को दूरदर्शी नीतियों और निजी भागीदारी और वैश्विक सहयोगों को आगे बढ़ाया जाए तब भारत अंतरिक्ष के क्षेत्र में एक उभरती हुई महाशक्ति ही नहीं बल्कि निसंदेह नेतृत्वकारी राष्ट्र के रूप में पहचाना जाएगा!  Visit

Sunday, 21 December 2025

Special Intensive Revision:- SIR (विशेष गहन पुनरीक्षण)

SIR प्रक्रिया: मतदाता सूची को शुद्ध और अद्यतन बनाने की महत्वपूर्ण कवायद

 भारत में एक शब्द काफी चर्चा में है – SIR यह कोई सम्मानसूचक संबोधन नहीं, बल्कि Special Intensive Revision (विशेष गहन पुनरीक्षण) का संक्षिप्त रूप है। भारत निर्वाचन आयोग (Election Commission of India - ECI) द्वारा चलाई जा रही यह प्रक्रिया मतदाता सूची को अधिक सटीक, पारदर्शी और अद्यतन बनाने के लिए शुरू की गई है।
SIR क्या है?
SIR का पूरा नाम Special Intensive Revision है, जिसे हिंदी में विशेष गहन पुनरीक्षण कहा जाता है। यह एक विशेष प्रक्रिया है जिसमें मतदाता सूची की गहन जांच की जाती है। इसका मुख्य उद्देश्य:
- मृत व्यक्तियों के नाम हटाना।
- डुप्लीकेट (दोहरे) प्रविस्टियां निकालना।
- बाहर शिफ्ट हो चुके मतदाताओं के नाम हटाना।
- नए पात्र मतदाताओं को जोड़ना।
- गलत या अपूर्ण जानकारी सुधारना।

यह सामान्य वार्षिक मतदाता सूची संशोधन (Summary Revision) से अलग और अधिक विस्तृत होती है। आखिरी बार देशव्यापी SIR 2003-2004 के आसपास हुई थी, और अब 20-21 साल बाद इसे फिर से शुरू किया गया है।

SIR प्रक्रिया क्यों जरूरी है?
भारत जैसे बड़े लोकतंत्र में निष्पक्ष चुनाव के लिए साफ-सुथरी मतदाता सूची आवश्यक है। कई बार सूची में गड़बड़ियां हो जाती हैं, जैसे:
- मृत व्यक्ति का नाम अभी भी सूची में।
- एक व्यक्ति का नाम कई जगह दर्ज।
- अवैध या अयोग्य व्यक्ति का नाम शामिल।

ऐसी गड़बड़ियां फर्जी वोटिंग या चुनावी धांधली का कारण बन सकती हैं। SIR से सूची की शुद्धता सुनिश्चित होती है, जिससे चुनाव प्रक्रिया मजबूत होती है। 2025 में बिहार से शुरू होकर अब उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, गुजरात, तमिलनाडु, केरल सहित कई राज्यों में यह चल रही है।

SIR प्रक्रिया कैसे होती है?
SIR एक समयबद्ध और घर-घर जाने वाली प्रक्रिया है। मुख्य चरण इस प्रकार हैं:

1. घर-घर गणना (Enumeration Phase):-
   - बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) घर-घर जाकर मतदाताओं की जानकारी लेते हैं।
   - वे कम से कम तीन बार घर का दौरा करते हैं।
   - एक एन्यूमरेशन फॉर्म भरवाया जाता है, जिसमें नाम, उम्र, पता, फोटो आदि की जानकारी होती है।
   - इस चरण में सामान्यतः दस्तावेज नहीं मांगे जाते – सिर्फ भौतिक उपस्थिति की पुष्टि।

2. ड्राफ्ट सूची प्रकाशन:
   - जांच के बाद ड्राफ्ट मतदाता सूची जारी की जाती है।

3. दावा-आपत्ति का समय:
   - अगर नाम छूट गया या गलती है, तो फॉर्म 6 (नया नाम जोड़ने), फॉर्म 7 (नाम हटाने), फॉर्म 8 (सुधार) भरकर आपत्ति दर्ज कराई जा सकती है।
   - ऑनलाइन voters.eci.gov.in पर भी फॉर्म उपलब्ध हैं।

4. आपत्तियों का निपटान:- 
   - सभी आपत्तियों के निपटारे के बाद फाइनल मतदाता सूची जारी होती है।

2025 के दूसरे चरण में कई राज्यों में यह प्रक्रिया नवंबर-दिसंबर तक चली और फाइनल सूची 2026 में आएगी।

जरूरी दस्तावेज क्या हैं?
- सामान्य चरण में दस्तावेज नहीं मांगे जाते।
- लेकिन दावा-आपत्ति या वेरिफिकेशन में: आधार, पासपोर्ट, जन्म प्रमाण पत्र, 10वीं मार्कशीट, राशन कार्ड आदि में से कोई एक।
- आयोग ने 12 तरह के दस्तावेजों की सूची दी है, ताकि कोई पात्र मतदाता छूट न जाए।

विवाद और आलोचना:-
SIR को लेकर कुछ विवाद भी हुए हैं। विपक्षी दल इसे "नागरिकता जांच" का पिछला दरवाजा बताते हैं, खासकर गरीब और अल्पसंख्यक समुदायों पर असर का हवाला देकर। लेकिन चुनाव आयोग स्पष्ट कहता है कि SIR सिर्फ मतदाता सूची की सफाई है, न कि नागरिकता जांच। नाम हटने से नागरिकता प्रभावित नहीं होती।

निष्कर्ष: लोकतंत्र की मजबूती के लिए जरूरी कदम
SIR प्रक्रिया चुनावी प्रणाली को मजबूत बनाती है। अगर आपका नाम सूची में है या नहीं, तो voters.eci.gov.in पर चेक करें और जरूरत पड़े तो फॉर्म भरें। यह हम सभी की जिम्मेदारी है कि मतदाता सूची सटीक रहे, ताकि हमारा वोट सही जगह पहुंचे।
धन्यवाद,  

मनरेगा(MGNREGA) से विकसित भारत:रोजगार की गारंटी और आजीविका मिशन:(ग्रामीण)-VB-G RAM G बिल 2025 तक का सफर

मनरेगा का  संक्षिप्त इतिहास:- ग्रामीण भारत की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए ग्रामीण विकास मंत्रालय भारत सरकार द्वारा वर्ष 2005 में नरेगा(NREGA) स्कीम थी शुरू की थी! जिसके तहत एक परिवार को एक वित्तीय वर्ष में 100 दिन के रोजगार की गारंटी प्रदान की जाती है जिसका नाम 2008 में बदलकर महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम मनरेगा (MGNREGA)कर दिया गया! शुरुआती समय में उक्त योजना का क्रियान्वयन ग्राम पंचायत द्वारा पंचायत सचिव और प्रधान के संयुक्त खाते से संचालित कर श्रमिकों के खाते में भुगतान किया जाता था परंतु वर्ष 2014 में भारत सरकार के डिजिटल प्रोग्राम के तहत जन धन खाता खोले गए जो ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए मिल का पत्थर साबित हुआ इसके बाद प्रत्येक श्रमिक का पैसा उसके बैंक खाते में जाना सुनिश्चित हुआ!  जिसे उपयुक्त योजना में हो रहे वित्तीय अनियमिता को काफी हद तक काम किया गया इसके बाद भारत सरकार की उक्त बैंक खाते को श्रमिक के आधार कार्ड से लिंक किया गया जिससे कि पारदर्शिता और अधिक पड़ी! उक्त योजना के बाद भारत सरकार ने वर्ष 2017 में मनरेगा के तहत बने परिसमत्तियों का Geo Tagging  किया गया! इसके बाद भारत सरकार द्वारा उक्त योजना में और पारदर्शिता  अगला कदम रियल टाइम अटेंडेंस को 2022 में  किया  जिसको  नेशनल मोबाइल मॉनिटरिंग सिस्टम(NMMS) जिसके तहत मोबाइल डिवाइस से श्रमिकों को की उपस्थिति दिन में दो बार दर्ज की जाती है और जिस की कार्यों में और  पारदर्शिता आई!  मुक्ति योजना में बदलाव समय की मांग और भारत को विकसित भारत बनाने की दिशा में एक कदम माना जा सकता है जिससे कि भारत सरकार  श्रमिकों के हितों की रक्षा के लिए वह भ्रष्टाचार को रोकने के लिए यह कदम उठाया गया! इसके बाद ओके योजना में परिवर्तन कर भारत सरकार ने 17 दिसंबर 2025 को लोकसभा में वह 18 दिसंबर को राज्यसभा में उक्त विधायक को नाम बदलकर विकसित भारत रोजगार की गारंटी और आजीविका मिशन ग्रामीण (VB- G RAM G) बिल संसद मे पास किया हैं! 

मनरेगा(MGNREGA) से विकसित भारत:रोजगार की गारंटी और आजीविका मिशन:(ग्रामीण)-VB-G RAM G बिल 2025 से कैसे अलग हैं:- 
1- उक्त योजना( VB- G RAM G) के तहत 125 दिन के रोजगार की गारंटी रही है जो कि मनरेगा में 100 दिन की गारंटी थी
2- कुछ हिमालय राज्यों को छोड़कर भारत सरकार द्वारा  योजना के तहत होने वाले व्यय 60:40 के तहत राज्यों को फंड जारी करेगी और अन्य मे कुछ हिमालय राज्यों मे होने वाले व्यय का 90:10 खर्च करेगी! 
3- उक्त योजना के तहत संपूर्ण गांव में टिकाऊ संपत्तियों का सृजन किया जाएगा और ग्रामीणों को रोजगार दिया जाएगा! 
4- इसके तहत हुए कार्यों को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के तहत निगरानी की जाएगी  और कार्यों की ज्योग्राफिकल मैपिंग होगी! 
5 - इस योजना के तहत जो भी कार्य का मांग करता है और यदि उसे 15 दिन के अंदर कार्य नहीं मिलता है तो उसे बेरोजगारी भत्ता दिया जाएगा! 

VB-G RAM G योजना की  चुनौतियां:-  मुक्ति योजना को लागू करने में कई सारी चुनौतियों का सामना भी करना पड़ सकता है जो मुख्य रूप से निम्न प्रकार है
1- ग्रामीण भारत में कई राज्य व ग्रामीण क्षेत्र ऐसे हैं जहां इंटरनेट बहुत या तो धीमा चलता है या वहां नेटवर्क की सुविधा नहीं है तो उक्त योजना के तहत होने वाले डिजिटल रूप से कंट्रोल कार्यों के क्रियाव्यंन में समस्या का सामना करना पड़ सकता है! 
2- इस योजना में फंड की स्थिति स्पष्ट करनी होगी जिससे कि मजदूरों को समय पर भुगतान हो सके और मजबूत परिसंपत्तियों का निर्माण हो सके! 
3- ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करना भी एक बहुत बड़ी चुनौती है

सरकार की दृष्टिकोण से योजना यदि धरातल पर सही ढंग से क्रियान्वित होती है तो यह ग्रामीण भारत के विकास के लिए व  भारत को 2047 तक विकसित भारत बनाने की दिशा में एक मील का पत्थर साबित हो सकता हैं! Visit

Saturday, 26 May 2018



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ग्रामीण विकास में मनरेगा(MGNREGA) की भूमिका

मनरेगा का इतिहास-:

  • ज्यां द्रेज(jean dreze) को "नरेगा का आर्किटेक्ट" कहा जाता है। उनका जन्मबेल्जियम में 1959 में हुआ था!भारत में कार्यरत सामाजिक कार्यकर्ता और अर्थशास्त्री हैं। भारत में उनके प्रमुख कार्यों में भूख, अकाल, लिंग असमानता, बाल स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे मुद्दे शामिल हैं।
  • राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना(Nrega) को 25 अगस्त 2005 को अधिनियमित किया गया!
  • नरेगा(nrega) की शुरूवात 2 फरवरी 2006 को आन्ध्रप्रदेश के अनन्तपुर जिले में देश के 200 जिलों में हुई!
  • 1 अप्रैल 2008 को सम्पूर्ण देश में यह योजना लागू हुई!
  • 2 अक्टुबर 2009 को नरेगा(Nrega) का नाम बदलकर महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम(Mgnrega)कर दिया गया!

मनरेगा का उद्देशय-:

  • ग्रामीण भारत के जीवन में सुधार लाना!
  • विशेषकर ग्रामीण महिलाओं का विकास!
  • ग्रामीण परिवारों को 100 दिन के रोजगार की गारंटी देता हैं!
  • ग्रामीण परिवारो को समाज की मुख्यधारा में लाना और बैकिंग सेक्टर से जोड़ना!
  • ग्रामीण इन्फ्रास्टकचर का विकास, जैसे मुख्य उद्देशय शामिल हैं

मनरेगा की कार्यप्रणाली-:


  • यह विश्व की सबसे बडी़ रोजगार परख योजना हैं!
  • इस अधिनियम के तहत प्रत्येक ग्रामीण परिवार को जो उक्त योजना के तहत अकुशल श्रमिक के रूप में कार्य करना चाहता हैं उस परिवार को 100 दिन के रोजगार की गारंटी देता हैं!
  • पूरे वित्तीय वर्ष में कराये जाने वाले कार्यो का चयन ग्राम के लोगों द्वारा कर व ग्राम सभा की खुली बैठक में अनुनोदित किया जाता हैं!
  • श्रमिकों को मजदूरी का भुकतान श्रमिक को सीधे उनके बैंक खाते में किया जाता हैं!
  • मनरेगा के तहत कराये गये कार्यो की देखरेख भारत सरकार द्वारा भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन की Geo platform..Gps द्वारा geotagging के माध्यम से की जाती हैं!

मनरेगा के तहत अनुमन्य कार्य-:

मनरेगा के तहत दो प्रकार के कार्य किये जाते हैं
  1. सार्वजनिक कार्य- जिसके अन्तर्गत पेयजल,ग्रामीण संयोजकता,खेल ग्राउण्ड,जल संरक्षण एंव जल संचय,भूमि सुधार,बाड़ नियंत्रण व अन्य कार्य जो राज्य सरकार या भारत द्वारा अधिनियमित हो कराये जाते है!
  2. निजी कार्य-: जिसके अन्तर्गत एसे कार्य जिससे ग्रामीणो की आजिविका में सुधार हो जैसे,मछली तालाब व पशु के लिये पशुबाडा बनाया जाता हैं

मनरेगा में सुधार की आवश्यकता-:

मनरेगा ग्रामीण क्षेत्र के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है परन्तु आधिनयम में पर्वती  व मैदानी क्षेत्रों के लिए एक ही नियम बनाये गए है !जबकि पर्वती क्षेत्रों की भगौलिक स्थिति बहुत ही जटिल है जिससे सामान नियमो के तहत कार्य करना बहुत ही कठिन है जिसे सरल बनाने की आवस्य्क्ता  है !जिससे ग्रामीण भारत का समग्र विकास हो सके! 🙏🙏

Thursday, 17 May 2018

उत्तराखंड में पलायन: एक गंभीर समस्या

उत्तराखंड में पलायन एक गंभीर समस्या के रूप में सामने आ रही है !इसके दो मुख्यतया दो कारण है
१- प्राकृतिक कारक
२-मानवी कारक
प्राकृतिक कारक  - किसी भी राज्य हो या राष्ट्र उसके विकास के लिए अवसंरचना(Infrastructure) का होना बहुत ही आवश्यक है परन्तु  उत्तराखंड की भगौलिक स्थिति पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण यहॉ  वर्ष में प्राकृतिक जैसे बाढ़ ,भूस्खलन समस्याओं से जूझता रहता है जो विकास में बड़ी रुकावट पैदा करता है जिससे ग्रामीण क्षेत्र में निवास करने वाले परिवार मैदानी भागों में पलायन करने को मजबूर है

मानवी कारक - मानव अपने विकास व विनाश के लिए स्व्यम ही उत्तरदायी है उत्तराखंड में पलायन की समस्या कुछ नहीं अपितु यहां के लोगो की सोच है जिसके निम्न्लिखित कारक है

  • गुणवक्ता परख शिक्षा का ना होना -सरकारों ने इतने शिक्षण सस्थान  खोले जिनका रखरखाव करना सरकार के लिए मुश्किल हुआ और अंततः आज ये स्थिति है की आज उन शिक्षण सस्थान को बंद करने की स्थिति में है 
  • शिक्षा ,सड़क ,स्वास्थ अन्य मूलभूत संसाधनों का रखरखाव नहीं होना भी पलायन का मुख्य कारण है!
  • कृषि क्षेत्र में युवाओं की रूचि कम होना - यहां के लोग ना तो खुद कृषि कार्य करना चाहते और ना ही उसको उपयोग के लिए दुसरो को देना चाहते ! यदि इसी जमीन को सरकार पट्टे पे ले के किसी ऐसे व्यक्ति को दे जो उस भूमि मे अच्छा कर सकता है तो सायद उत्तराखंड में पलायन नहीं होता !
  • दुसरो की देखादेखी भी यह के लोगो की प्रवित्ति है जिससे भी दिनप्रतिदिन पलायन में इजाफा हो रहा है 
पलायन को रोकने के कुछ सुझाव - पलायन केवल सोच पर निर्भर है इसको रोकने के कुछ सुझाव निम्न है !
१-नया भूमि बंदोबस्त नीति लागू हो और पहाड़ की जो बंजर पड़ी भूमि (Unusse Land) को पट्टे (Lease) पर दी जाये या तो राज्य की लोगो को या फिर अन्यत्र राज्य के लोगो जिससे यहां कृषि को बहुत बढ़ावा मिलेगा !
२-पर्यटन स्थलों का विकास था उस का विज्ञापन (Advertisment) भी किया जाये !
३- राज्य के कुछ ऐसे स्थानों को चिन्नित करके उन में लघु उद्धयोगो की स्थापना की जाये जिससे यहां के युवाओं को रोजगार मिल सके !
४- तकनीकी शिक्षण सस्थानों की स्थापना की जाये !

Wednesday, 18 April 2018

भारत की राजनीति का गिरता स्तर :पदोनत्ति में आरक्षण

वर्तमान में भारत की राजनीति का स्तर सबसे निचले पायदान पर पहुंच गया है ! जहां खुद भारत सरकार में गठित कमेटी यह कहती है की आरक्षण की समीक्षा होनी चाहिए वहां कुछ राजनीतिक दल अपने निजी स्वार्थ के लिए एक विशेष  जाति को पहले तो नौकरियों में आरक्षण और उसके बाद  पदोनत्ति में आरक्षण के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट में पैरवी करने वाली है !जो की किसी भी हद तक स्वीकार नहीं किया जा सकता ! यह सीधे -सीधे एक सवर्ण नौकरीपेशे के मौलिक अधिकारों का हनन हैं जब किसी विशेष वर्ग को इस काबिल बना दिया गया है की वह सरकारी नौकरी प्राप्त कर एक अच्छा जीवन व्यतीत कर रहा है उसके बाद भी उसे पिछड़ा मानना वह भी केवल जाति के नाम से और उसे पदोनत्ति में आरक्षण देने की पैरवी करना राजनीति का गिरता स्तर को ही प्रदर्शित करता है !

Sunday, 8 April 2018

भारतीय न्यायपालिका का लचीलापन


भारत में एक आम जनता के लिए आज भी न्याय मिलना बहुत ही कठिन है भारत की न्याय पालिका का स्वरूप इतना जटिल बनाया गया है की एक आम नागरिक/गरीब  के लिए न्याय मिलना सागर से मोती निकलना जैसे हो गया है यहां  तो एक अपराध को अपने नतीजे तक पहुँचने में २० से २५ या इससे भी अधिक का समय लग जाता है ! एक सेलिब्रिटी होने पर तो यह समय इससे भी अधिक का होता है ! तब तक रसूकदार धन बल का प्रयोग कर के अपने को बेकसूर साबित करके छूट जाते है ! ऐसी न्याय व्यवस्था जहां लोअर कोर्ट <सेशन कोर्ट <हाई कोर्ट <सुप्रीम कोर्ट तक जाते जाते इतना समय होता है की कोई भी अपराधी/ रसूकदार अपने को बेकसूर साबित कर देता है था इस व्यवस्था  के चलते रिहा हो जाता है और ऐसी तरह कोई गरीब व्यक्ति को  न्याय मिलना बहुत ही जटिल है !

Thursday, 5 April 2018

भारत की प्रगति में सबसे बड़ा अवरोधक : जातिगत आरक्षण

दोस्तों इस पोस्ट के माध्यम से एक ऐसे बेरोजगार की पीड़ा लोगो /सरकार के समक्ष रख रहा हू ! जो मेरी ही नहीं अपितु भारत के हर उस बेरोजगार की है जो इस बढ़ती ही जा रही  लाइलाज वीमारी से ग्रस्त है!हम आरक्षण के खिलाफ नहीं है हम तो भारत की उस व्यवस्था के पक्षधर नहीं है!  जिसमें एक सर्वण गरीब व्यक्ति जिसके पास दो वक्त की रोटी नहीं है और मेहनत मजदूरी करके  जो की अपने बच्चों को शिक्षा देता हैं उस व्यक्ति को तो आरक्षण नहीं मिलता और जो व्यक्ति इस के लायक उसे सिर्फ जाति के आधार पे उसे दलित मानना और आरक्षण का लाभ देना इस देश का दुर्भाग्य के अतिरिक्त  कुछ नहीं कहा जा सकता ! आज २१वी सदी में हम जिस समय विश्व के  अधिकतर देश विकसित हो गए है भारत आजादी के ७० सालों के बाद भी वही के वही हैं ! १० वर्षों के लिए दी गयी अस्थाई व्यवस्था को कुछ राजनीतिक पार्टयियों ने केवल अपने फायदे के लिए एक स्थाई व्यवस्था बना दी !ऐसी ही व्यवस्था में अगर जल्द सुधार नहीं किया गया तो भारत इस  प्रतिस्पर्धी विश्व में जिसमें हर एक देश को आगे बढ़ने की होड़ सी लगी है कही पीछे छूट जायेगा ! 
कभी तो ऐसा लगता है की अग्रेज से  हमको आजादी जल्दी मिल गयी यदि यही आजादी २० वर्षो बाद मिलती तो सायद भारत भी आज तकनीक की दुनिया में बहुत आगे होता और सायद भारत में ऐसी बीमारी (जातिगत आरक्षण ) का उदय भी नहीं होता !